" एक लडका था... गॅंवारसा
दाढी बढाके घुमा करता था,
हिंदू-मुसलमान करता था,
जब भी मुँह खोलता था
लंबी लंबी फेंकता था,
नजरे झुकाके, शरमाके
प्रेस कॉन्फरन्सेस टाला करता था,
खुलेआम दिन दहाडे, देशको बेचा करता था,
जब भी कहना था कुछ उसको
सिर्फ मन की बांते करता था,
बनाके स्टेडियम अपना, कुछ कहता था अंग्रेजोंसे
देखता हूँ, इंग्लैंड कैसे जीतता है.... के इंग्लैंड कैसे जीतता है। "
अब जरा दम हो तो कोई बोलके दिखाए पिच के बारेमे। सेडिशन के नाम पर जेल ना भिजवा दे तो नाम बप्पीदा नहीं हमरा।
ए इंग्लैंड!! अपनी औकादमें रह। सब "मोटाभाई" एकसाथ आके इतना बढियासा स्टेडियम खड़ा किये है। कौनो माई के लाल में इतनी हिम्मत नहीं के भारतको इस पिच पर हरा सके। ये मॅच भला हम हारतेही कैसे? वो हार भारतकी नहीं बल्कि पूरे 'टागोरजी' की हार मानी जाती। भाई दिन दहाड़े दंगे हो जाते बोल देता हूँ।
काश .. भारतके सारे पिचेस 'वैक्सीन गुरु' ही बनवाते तो भारत हमेशा अजेय रहता।
एक देशभक्त क्रिकेटप्रेमी!!
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