सालोंसे वहीं अपनी जगह पडी रहती है. लेकीन. . .
लेकीन, इन भोलीभाली पटरीयोंको इतना भोलाभालाभी मत समझिएगा। ये बिलकुल लाचार या बेचारी नहीं है, केवल मासूमीयत का स्वांग लेती है ये पटरीयाँ। लेकिन वो कैसे???
यूँ देखा जाए तो दो शहरोंको या गाँवोंको जोडती है ये पटरीयाँ। लेकिन अगर दुसरे नजरीयेसे देखा जाए, तो अपनोंको जुदा भी तो यहीं पटरीयाँ करती है। अगर ये बेजान है, तो लोगोंको जुदा करने का हक किसने दिया इन पटरीयोंको?? अगर ये थकी-हारी हैं, तो क्यों अपनोंकों दूर ले जाती है?? किसने हक दिया इन पटरीयोंको मासूम दिलोंको जुदा करने का???
इसलिये, ये पटरीयाँ निस्तब्ध, बेजान या थकी-हारी नहीं हैं। मनुष्य की भावनाओंको झकझोंडने की ताकत है इनमें। जुदाई का स्वाद चखाने की खूबी है इनमें।
दरअसल, ये पटरीयाँ कहाँसे आयी?? मनुष्यनेही तो इसे जनम दिया है। अपने फायदे के लिये, अपने स्वार्थ के लिये। जब किसी से मिलाप हो तो बेशक ये पटरीयाँ अपनीसी लगती है, लेकिन तब हमारा इनके पास ध्यान नहीं जाता। यदि इसके विपरित हो तो?? तब ये पटरीयाँ मानों मनुष्यकीही दुश्मन लगती है। जी करता है की एकही क्षण में, इन बलवान पटरीयोंको उखाड फेंक दूँ ताकि कभी ये दोबारा किसी को जुदा करने की हिमाकत न करें। यही इनके लिये उचित दंड होगा। पर इन्हें ये सजा देना, किसीके बसकी बात नहीं क्योंकी हम इन पटरीयोंके "गुलाम" बन चुके है। वह अपनी मनमानी करती रहेंगी और हम तब यूँही हाथ पे हाथ धरे बैठे रहेंगे। पहले भी कुछ नहीं कर पाए थे हम और अब भी कुछ नहीं कर पाएँगे।
सचमुच, इनकी क्षमता अपरंपार है। न केवल ये बडी-बडी रेलगाडीयोंका वजन ढोती है बल्कि उन रेलगाडीयोंमें बैठे हुए, दिल पे पत्थर रखे हुए इन्सानों का बोझभी तो यहीं पटरीयाँ उठाती है।
एकही क्षणमें रेलगाडी, उन्हीं पटरीयोंसे चलके आँखोंसे ओंझल हो जाती है. प्लॅटफॉर्मपर ये पटरीयाँ केवल कुछ लोग छोड जाती है, जो अपने दिल को संभालने की बेतुकीसी कोशिश करनेमें जुटे रहते हैं।
लेकिन कहींपे भीतर इन लोगोंके मनमें एक आस लगी रहती है, के शायद ये पटरीयाँ एक दिन हमारी दोस्त बन जाए। हमारे अपनोंको दोबारा हमारे करीब ले आए . . . . . हमारे करीब ले आए . . . . .
~~~~~~~~~~~~ सुरज ~~~~~~~~~~~~~~
No comments:
Post a Comment