Wednesday, 18 July 2018

एक तू ही तो है . . .

फ़िसल पडा रास्तेमें तो अंजान हाथ उठाने दौड पडे,
पर फ़िसला जब जिंदगीमें तो मेरे अपने नदारद हो गये

अच्छाईयोंको नजरअंदाज करके मेरी बदनामीयोंके किस्से मशहूर हो गये,
अपना समझा था एक वक्त जिन्हे वो हर कोई दरकिनार होके चल दिये

न जाने कितनोंने मुझे जाँचा परखा पर कोई ज्यादा देर करीब न रुक सका,
झूठकी इस मंडीमें मेरा सच कौडीयोंके भावमेंभी न बिक सका

आलम ये था के ठेस खाना आदतसी बन चूकी थी,
दूसरोंकी जिंदगी बदलने चले थे पर अपनी वहीं थमी थी

सपनोंको खाक तो होना ही था खूदको बेशकीमती नगीना जो समझ बैठे थे,
काश जितना तराशा औरोंको उतना खुद पर भी कभी गौर फ़र्माते

बादलोंमें बैठा कहीं कोई अपने पास आने का बुलावा भिजवा रहा है
पर वो दस्तक सुनतेही कोई नन्हा फ़रिश्ता दौडकर उंगली थाम रहा है

उस नन्हींसी जानकी मुस्कान जिंदगीकी मशाल जलाये खडी है
कहीं तो अपनी कदर होगी ये आखरी आस उसीके कदमोंमे आकर पडी है

चाहे लाख शिकायते जिंदगीसे हमेशा रहेंगी पर उसका एहसानमंदभी मैं जरूर रहूंगा
मेरा नटखट "अक्स" जो उसने मुझे सौंपा है उसे मरते दम तक दिल-ओ-जानसे चाहूंगा



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