Saturday, 7 November 2015

कविता - " करवट ले रही है जिंदगी धिरे धिरे !!! "

कुछ अधूरे छूटे ख्वाबोंको, अंजाम देनेको दिल चाहता है
गुम हो रही मुस्कान को, वापस लाने को जी चाहता है
पीछे छूटी किताबोंकी दुनियाँमें, दोबारा डूब जाने को जी चाहता है
कमबख्त उम्मीदोंसे, दोबारा इश्क लड़ानेको जी चाहता है 


ठोकरें मिली जरूर, पर उनसे मिली सीख को सलाम करने को जी चाहता है
जंगसे भरी बेडीयाँ पैरोंसे निकालकर, फ़ेंक देनेको जी चाहता है
हर एक दुवा क़ुबूल करनेवाले, उस ऊपरवाले को नमन करनेको जी चाहता है
जिंदगीकी आगोशमें सुकूनसे, हर एक लम्हा बिताने को जी चाहता है


न जाने आज ये खयालात, अचानक क्यूँ उमड़ आ रहे है
यूँ मानों के सब मिलकर, एक नई राह दिखा रहे हैं
वो राह सही है या गलत, इसी कश्मकशमें पूरी रात निकल गयी
पर अगली सुबह, मेरे हर सवालोंके राज़ खोलती चली गयी


कुछ ओसकी बूँदें, हँस पडी मेरी ओर देखके
इक हवा का झोंका, झूम उठा मेरे करीबसे 
कहींसे एक नन्हीं कोयल, कानोंमें आके गुनगुना गयी

पगले!!! फिक्र मत कर, करवट ले रही है तेरी जिंदगी धिरे धिरे !!!!




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