Sunday, 19 June 2016

*** " बारिश की आस " ***


ए बारिश!! 

तू क्यूँ अक्सर 'हाईक' की तरह लापरवाह बन जाती हो
कब, कहाँ, कितना बरसोगी ये किसीसे जताती नहीं हो,
हम फ़िर भी तेरे लिये रोज, दिवानोंसे तरसते हैं
सब्जीयोंके भाव देख़कर, तेरी शैतानी पर हसते हैं!


तेरा आना, तेरा जाना, 'हाईक' की तरह ही, मेरे हाथोंमें नहीं हैं
मैं जितनी भी तेरी गुहार लगाउँ, तुझसे मिलना इतना आसान नहीं हैं,
तुझसे सालभर उम्मीदें लगाये रखता हूँ पर तेरी धोका देने की आदत जाती नहीं हैं
क्यूँ करती हो मुझसे ऐसा खिलवाड, क्या मेरी मन्नतें काम आती नहीं  हैं??


थक चुका हूँ तुझसे लगाकर निरंतर आशा जिसकी तब्दीली होती है घोर निराशा
बादल गरजते हैं, बिजली चमकती हैं पर तू न आये ये कैसा है तेरा रोजका तमाशा,
तू आये तो कुछ पल रोमँटीकली जी सकूँ वरना रोज ही है जिम्मेदारीयोंका बोझा
तू आये तो थोडा प्रक्रूति के करीब जा सकूँ वरना रोजही है ए.सी. में ठिठूरना


मौसम विभाग का अनूमान और 'हाईक लेटर' कभी किसीके समझमे आता नहीं
सपने तो ढेर सारे है पर तेरी गैरमौजूदगी के कारन, वो कभी किसीको बताता नहीं,
तू आती भी है तो बडे धीमे पाँव, मानों आहट सुननेसे पहले ही तुम नदारद
क्या तुझे कोई गिला-शिकवा नहीं, कभी तो ठैर जाया करो बनके मेरी अमानत


लगता है तुझे भी 'मॅनेजमेंटने' खरीद लिया है, जो तू अपनी मनमानी पर उतर आयी हैं
पर जरा गौरसे देख, तेरे ना होने पर न जाने कितने घर बिखरसे गये हैं,
अब आना ही हो, तो दो-चार कौडीयों के 'हाईक' की भाँती मत आना
ऐसे बरसो की न सिर्फ़ मैं बल्कि इस प्रूथ्वी का कोना-कोना भिगो देना

  ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~  सुरज ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~

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