Friday, 13 October 2017

मेरी ख्वाहिशोंसे ज्यादा मेरी जिम्मेदारियोंकी कतार लंबी हुई है. . . . . . . . .

हर एक करवट आज किश्तोंमे बटसी गयी है
इक सुकूनभरी नींदकी कीमत आज बहुत मेहेंगी हुइ है, 
खिलखीलाती मुस्कुराहट अंदर कहीं दबसी गयी है 
मेरी ख्वाहिशोंसे ज्यादा मेरी जिम्मेदारियोंकी कतार लंबी हुई है

मनकी बात सुननेको आज वक़्त कहाँ
धनकी बातमें मशगूल सारा जहाँ
गेहरायी की कमी है एहसासोंकी इस मंडीमें
मेरी ख्वाहिशोंसे ज्यादा मेरी जिम्मेदारियोंकी कतार  लंबी हुई है

फ़िसलनभरी इस ज़िंदगीने मौकोंसे ज्यादा धोके दिये है
लड्खडाकर, रोकर फ़िर इस जंगमे आगे बढे है
हौसले पस्त हो या उम्मीदे शिकस्त दे इस बातसे बहुत बार डरे है
मेरी ख्वाहिशोंसे ज्यादा मेरी जिम्मेदारियोंकी कतार लंबी हुई है

रिश्तोंकी मुफ़लिसीका आलम ये है की इक आँसू गिरे तो दूसरा उसे रोकने दौडता है 
पराया समझा जिसे कभी कभी वही आपका गम ताड लेता है
खुशियोंकी राहोंमे दिल दिन रात आस लगाये तकता रहता है
मेरी ख्वाहिशोंसे ज्यादा मेरी जिम्मेदारियोंकी कतार लंबी हुई है

अपना ही पैसा खुदकी तरफ़ देखकर हसता रहता है
क्योंकी मजबूरीयोंकी गिरफ़्तसे छुटकारा नही ये उसे पता रहता है
अपनीही परछाईसे दूरीयां बढती नजर आ रही है
मेरी ख्वाहिशोंसे ज्यादा मेरी जिम्मेदारियोंकी कतार लंबी हुई है

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